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Aug 1, 2012

मुझे तुम्हारी आदत ..

काश ! मुझे तुम्हारी आदत ही हो जाती,
तब भूल जाती तुम्हे किसी बुरी आदत की तरहा !

तुम तो मुझमे सुबह की भांति समाये हो मेरी एक उम्मीद बनकर ,
तुम तो मुझमे रात की भांति समाये हो मेरी एक हार बनकर ,
बदन के हर हिस्से में दर्द बनकर सहलाते हो तुम मुझे ...
लोग कहते हैं -
काश ! मुझे तुम्हारी आदत ही हो जाती !

भावनाएं इस तरहा तरसती हैं मुझे तेरा नाम लेकर ,
जैसे रौशनी से गुजर कर अँधेरे में गुम होती परछाई हूँ कोई,
जैसे वक़्त से गुजरा , पीला सा पत्ता हूँ कोई,
मुझसे झोंके बन टकराते हो , तब
तड़प कहती है -
काश ! मुझे तुम्हारी आदत ही हो जाती !

लगता है मौन में मुझको,
किसी ने छीन लिए हो , रंगीन सब सपने,
नाराजगी के सब कारण .
और छोड़ जाते हो टूटे बिखरे शब्द मेरे
और एक भीगता कागज ,
जो रुदन में कहता है -

काश ! मुझे तुम्हारी आदत ही हो जाती,
तब भूल जाती तुम्हे किसी बुरी आदत की तरहा !


-अंजलि माहिल 



Jul 13, 2012

मैं एक बार फिर ...."शून्य "

काफी वक़्त बाद आना हो रहा है यहाँ।.....
अपने जीवन की परेशानियों से समाधान ढूंढ़ रही थी , इसलिए खामोश थी।...सब से  रूककर..... कुछ वक़्त अपने लिए सहेज रही थी .....मगर अब लगता है कि  बुरे वक़्त से जूंझने के लिए सबसे अच्छा साथी अपने शब्द हैं मेरे लिए, जो ...मेरे "साथी" भी हैं ....और मेरी "पहचान" भी !!


शून्य ( 0 )

" शून्य हो जाती हूँ मैं..."

पूर्ण अहसासों के अधूरे स्पर्श से,
अतीत के पुराने  अढीले पत्रों की ,
आड़ी - टेढ़ी रेखाओं मे...
जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?

जज्बातों के कटु अनुभवों में,
रेशम से ज्यादा मजबूत बुनी यादों ,
के पुराने मद्धम पड़े संवादों में...
जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?

शून्य हो जाती हूँ मैं
जब देखकर मेरी बेबसी भी,
तुम होकर नादान  मुस्कुरा देते हो...
लकीरें खींचकर जब मेरे आंसू
सूख जाते हैं मेरे जमीर में ....
और कहते हो तुम ..मेरे  चेहरे
 पर अब रूखापन  नजर आता है ...

तुम जानते हो क्या...
"जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?"


-अंजलि माहिल 


Feb 10, 2012

तुम्हे मैं जान - ना पाया !


 "   बहुत देर तक अब खामोश, लब रहते नही मेरे ..! "


बड़ा अजीब लगता है 
रोज ही तो गुजरा हूँ इस रस्ते से ,
मगर खामोश रहता हूँ  तो
तुम्हे मैं जान - ना पाया !!

रोज तुम से होकर ही तो गुजरा हूँ मैं 
किसी की यादों के हाथों को थामे हुए 
कभी गुनगुनाता हुआ..... कभी बिलकुल खामोश 
कल भी तो था किसी हसीन 
चेहरे के संग-संग ...उसे खुद से झूठलता  हुआ 
उस के वजूद को नकारता हुआ 
वो चेहरा भी तुम्हारी ही तरहा
अक्सर खामोश रहता है ...
मुझे तुम्हारी ही तरहा
गुजरते  देखता है खुद में 
मगर खामोश रहता है !
मुझे अकेला छोड़ता ही नही है साया उसका 

चलो ....आज उसकी बातें नही करता !
कुछ बतलाओ मुझे भी अपना ..
उसे भूल जाना है ..
तुम इतने ठहरे हुए हो ..तुम्हे बोझिल नही लगता ?
एक दिशा भागते हुए ..अब थक चूका हूँ मैं 
तेरी दरारें देखता हूँ ...तो उसके चेहरे पर  
सूखे अश्कों के निशान उभर आते हैं दिल में 
चलो ...आज उसकी बातें नही करता !
पीछे मुड़कर देखने से डरता हूँ मैं 
थककर फिर से जब तुझपर चलता हूँ मैं ,
कि.. उसकी नम आँखें अभी तक मेरा पीछा करती हैं !!

बड़ा अजीब लगता है 
रोज ही तो गुजरा हूँ इस रस्ते से ,
मगर खामोश रहता हूँ  तो
तुम्हे मैं जान - ना पाया !!


BY: Anjali Maahil

Feb 3, 2012

हमसाया मेरा...

"  हमसाया  मेरा ...छोड़मुझे  फिर किस से  मिलने जाता है ? "


जुदा होकर हमसाया मेरा ,  वो फिर किस से मिलने जाता है ?
दुनिया की तीखी नजर चुरा , और मीठी मीठी बात बना 
धीरे- धीरे अन्धयारे की खाई में ...  फिर किस से  मिलने जाता है ?
हमसाया मेरा .... छोड़ मुझे  फिर किस से  मिलने जाता है ?

एक रोज चुपके छुपके देखा था ..
और सोचती मैं भी रह गयी थी 
वो मुझमे , मुझसे ही तो निर्मित है,
फिर छोड़  मुझे वो  किस से मिलने जाता है ?

वो उतना तन्हा रहता है ...,
मैं जितना तन्हा रहती हूँ !
ना उसका कोई संगी  है... ,
ना मैं साथ किसी के रहती हूँ  !
फिर छोड़  मुझे वो  किस से मिलने जाता है ?
वो हमसाया मेरा बनकर ....किससे मिलने जाता है ? 

-अंजलि माहिल 

Jan 28, 2012

अब बस .... इंतज़ार होगा ?





अब बस ...इंतजार  होगा .....तेरा  ही इंतजार  होगा !!
अब मेरे दिल मे किसके घर आने का इंतज़ार होगा ?


अब किसके दिन भर के सवाल , जवाब पूछेंगे मुझे ,
अब किसकी आँखों मे अपना अक्स देखूँगी मैं उम्र-भर ,
किसकी खुली आँखों को मेरे हाथों का अब इंतजार होगा ,
अब मेरे दिल मे किसके घर आने का इंतज़ार होगा ?

अब सुबह किसके सपनो से जगाएँगी मुझे ,
अब रातें किसकी करवटों से जागेंगी उम्र-भर ,
आँखों के बहते आंसुओ को किसके हाथों का अब इंतजार होगा ,
अब मेरे दिल मे किसके घर आने का इंतज़ार होगा ?


अब किस के कांधे पर सुकून से नींद आएगी मुझे ,
अब किस से मांगूंगी , फूलों की किस्तें मैं उम्र-भर ,
बिखरे इन बालों को किसके सहलाने का अब इंतजार होगा
अब मेरे दिल मे किसके घर आने का इंतज़ार होगा ?

  अब किसको हँसता देखकर सांसे आएँगी मुझे ,
अब किस से करुँगी उसी की शिकायतें मैं उम्र-भर ,
मेरे बचपने पर अब किसके "ख्याल रखने" का मुझे इंतजार होगा ,
अब मेरे दिल मे किसके घर आने का इंतज़ार होगा ?


- Anjali Maahil 


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