आज भी चुभती हैं दिल मे कहीं |
कसक आज भी उभरती है ,
अधूरी खवाहिशों की दिल मे कहीं |
तनहा हम आज भी हो जाते हैं ,
उनके ख्याल आ जाने पर ,
उम्मीद आज भी रहती है
की-
"शायद परिंदों की तरहा ,
शाम को उसका भी आना होगा "
थम जाते हैं आसूं आज भी ,
उसकी झूठी बातों की याद से ,
की-
"रोती हो तुम जो ,
तो दर्द मुझको भी होता है |"
खामोश होठों पे भी ,
आज तक नाम उसका पाया मैंने ,
चंद कदम दूर वो तो हाथ छुड़ा ,
और कह बैठा -
"आखिरी सफ़र तक साथ निभाया मैंने "
चादर भीग जाती है आज भी ,
सुखी आखों में टूटे सपनो की चुभन से ,
मुस्कुराहट मुरझा जाती है आज भी ,
उसकी बेरुखी भरी बातों की याद से ,
ऐसा अहसास जो वो भी करता ,
ज़िंदगी मे जो कभी, तो-
शायद हालात और ज़िंदगी भी कुछ और होती ,
ये अधूरी तनहा सी रातें आज भी चुभती हैं दिल मे कहीं.....
wah wah .....anjali ji kya line likhi ye ek dard sa uth aata hai jigar me in lines ko padh kar fir karvat le uthata hai beeta hua kal vo din vo sham aur vo rat..........nice one poem...thanx in line ke liye....
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