उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है |
कई बार मैंने जुगनू सी रौशनी देखी है वहां |
सब कुछ बिखरा है वहां ,
पर बड़े सलीके से ,
आँगन में उस पेड़ की माटी ,
आज भी गीली मिलती है वहां |
मसालों के सूखने की महक ,
आज भी मिलती है वहां |
राख आज भी भरी होती है राहें में कहीं ,
चाकी के दो पाट खामोश हैं तो,
मगर चलते तो क्या - क्या कहते??
कि-
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है .?"
हवा से खुलते किवाड़ अक्सर बजते हैं
कुछ कहते हैं |
मैं घंटो निहारती हूँ ऐसे -जैसे ,
खुले और बंद वो किसी सहारे से हुए |
आज भी पायल की रुन-झुन सुनाई देती है वहां ,
"भरम" कहते हैं इसे लोग मेरा ,ये
कहकर वो तो कोई झींगुर होगा |
मुझे इक अहसास तब भी होता है ,
कि हो ना हो ...
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है | "
कुछ है जो खींचता है उस ओर ,
जो अन- छुआ है वहां ,
उडती हुई धुल मुझे अक्सर ये कहती है -
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है | "
BY: Anjali Maahil
BY: Anjali Maahil