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Feb 27, 2011

"मगर याद रह गयी ..."


ये सर्द हवाएं जब मुझे छुकर गुजरती हैं 
तब तब मुझे तेरा गुजर जाना  तेरा याद आता है 
ये सर्द -भीगी सी पूस की रातें 
 सुकून तुम्हे , और मुझे तकलीफ देती हैं 

उस साल जब तुम से हम  मिले 
कहानी नयी थी बुनी ,
गर्म अहसासों की ऊन ,
से गर्म चादर थी  बुनी ,
मगर साल बिता ,
साथ था मौसम बिता ,
मेरे ही अश्कों में,
ये सर्द -भीगी सी पूस की रातें ,
 सुकून तुम्हे, और मुझे तकलीफ देती हैं |


खिड़की से आती धुप में अब भी याद आता है तू ,
हवा से हिलते पर्दों से, धीरे से मुस्काता है तू ,
पास मेरे अब दर्जन भर भी शब्द नही ,
कि तुझको बता सकूँ कितना याद आता है तू ,
ये सर्द -भीगी सी पूस की रातें , 
सुकून तुम्हे, और मुझे तकलीफ देती हैं |


ये सर्द हवाएं जब मुझे छुकर गुजरती हैं 
तब तब मुझे तेरा गुजर जाना  तेरा याद आता है |



BY: Anjali Maahil

4 comments:

  1. यादें ऐसी ही होती हैं और जो दिल के पास हो उसे भूलना भी आसान नहीं होता और उसकी याद रह रह कर तडपाती रहती है.

    लाजवाब है आपकी यह कविता.

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  2. very nice..dil chuu gai poem..

    ReplyDelete
  3. एक बेहद ही उम्दा, दिल को छु लेने वाली रचना ... बहुत खूब ..!!

    "तुझ से लडू या तेरी यादों से , दोनों से ही रंजिश है मेरी ,
    पर लड़ ना सका कभी तेरी यादों से , और.. अब तुझसे लड़ना भी मुमकिन नहीं ..."

    ReplyDelete

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