"सुनो, मेरी आवाज़ , मैं भी हूँ ......और जिन्दा हूँ | "
बंद कमरा .और छटपटाता धुप अँधेरा
दीवारों से टकराता हुआ
बेबस है बहुत ,चीखता भी है
"सुनो, मेरी आवाज़ , मैं भी हूँ ,
और जिन्दा हूँ |
तुम भी अजीब हो !
तुम जो मुझसे डरते हो ,
और डरा जो मैं पहले से हूँ |
डरा हूँ इन्सान की टूटी हुई उमीदों से ,
डरा हूँ इन्सान की अन्दर की ख़ामोशी से ,
डरा हूँ उसकी खुल कर फिर बंद होती पलकों से ,
जो अक्सर मुझे से कहती हैं -
"अँधेरे में डर लगता है | "
वो जानते ही नही .. या मानते ही नही
मैं जीवन का अहम् हिस्सा भी हूँ ,
हर कहानी में किस्सा भी हूँ ,
वो मैं ही था जिसने महसूस किया ,
पहली बार आशा की रौशनी को ,
किसी की ख़ामोशी को ,
फिर कोई बेचैन है ये सोच कर ,
मैं जाने क्यूँ और भी गहरा हो गया ?
"सुनो, मेरी आवाज़ , मैं भी हूँ |
और जिन्दा हूँ | "
-Anjali Maahil
दिल को छू लेने वाली कविता.
ReplyDeleteभावनात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमुझे प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया ...
ReplyDelete