उसकी चोट मेरी ही
खता सी लगती है मुझे |
वो दर्द अपने जब सुनाता है
थामकर हाथ मेरा |
झुक जाती है नज़र मेरी ,
कांप जाता है बदन मेरा |
दिल तो करता है बढ़ कर ,
थम लूँ उसको ,
मगर मजबूर हूँ |
अपने जमीर पर कुछ बोझ लिए बेठी हूँ|
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
मेरे ही लफ्ज मेरा साथ ,
छोड़ गये मेरा हमसाया बनकर ,
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
बताउं कैसे ?
टूटकर बिखर जाती है हस्ती मेरी ,
जब आसूं उसकी आँख का देखती हूँ ,
ये बात जाताऊँ कैसे?
बताउं कैसे ?
यूँ तो सामना दुनिया का ,
करूँ , होंसला है मुझमे ,
जाने क्यूँ एक उसका ही सामना नही होता |
उसकी आँखों में मैं अपना इंतजार देखती हूँ,
बात उसको बताउं कैसे ?
मज़बूरी अपनी सुनाऊँ कैसे ?
खुद को जलने से रोक पाऊं कैसे ?
उसकी हर चोट मेरी ही ,
खता सी लगती है मुझे |
BY: Anjali Maahil