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Apr 13, 2011

वेदना

उसकी चोट मेरी ही 
खता सी लगती है मुझे |
वो दर्द अपने जब सुनाता है 
थामकर हाथ मेरा |
झुक जाती है नज़र मेरी ,
कांप जाता है बदन मेरा |
दिल तो करता है बढ़ कर ,
थम लूँ उसको ,
मगर मजबूर हूँ |
अपने जमीर पर कुछ बोझ लिए बेठी हूँ|
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
बताउं कैसे ?

मेरे ही लफ्ज मेरा साथ ,
छोड़ गये मेरा हमसाया बनकर ,
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
बताउं कैसे ?

टूटकर बिखर जाती है हस्ती मेरी ,
जब आसूं उसकी आँख का देखती हूँ ,
ये बात जाताऊँ कैसे?
बताउं कैसे ?

यूँ तो  सामना दुनिया का ,
करूँ , होंसला है मुझमे ,
जाने क्यूँ एक उसका ही सामना नही होता |
उसकी आँखों में  मैं अपना इंतजार देखती हूँ,
बात उसको बताउं कैसे ?
मज़बूरी अपनी सुनाऊँ कैसे ?
खुद को जलने से रोक पाऊं कैसे ?

उसकी हर चोट मेरी ही ,
खता सी लगती है मुझे |


BY: Anjali Maahil

Apr 11, 2011

आरना

दुर्गा अष्टमी की आप सभी को  बधाई !
माँ दुर्ग की आप सभी पर कृपा बनी रहे !!



एक बीते वक़्त से वो मुझे मंदिर में ढूंढ़ते हैं |
मगर पट आज भी बंद , घर के , मेरे लिए |

रोज प्रात: संध्या आरती में "मैं" ही "मैं" गुंजू |
और फिर आशीष को , सर नवाए , सामने मेरे ,
मगर पट आज भी बंद , घर के, मेरे लिए !




रूप मेरा , धन -धान्य  सुख सम्पति में जो मांगे 
वही मेरे अंश पर भी मौन  हैं 
और इसलिए ,
पट आज भी बंद , घर के , मेरे लिए |





वक़्त के साथ आई दुर्गा अष्टमी...
तो थाल में हलवा भी आया और मेवा भी ,
और पाँव मेरे धो- धो के पूजते हैं ,
"माँ साल आगले फिर आना " - कहकर 
और पट आज ही खुले , घर के , मेरे लिए !





सोचो -
क्या मैं आज ही लक्ष्मी हूँ , इनके लिए  ?
क्या मैं आज ही दुर्गा का अंश हूँ ,घर में इनके ?


(GIRLS ARE NOT LIABILITIES, THEY ARE ASSETS....FEMALES ARE NOT EMAILS , D'NT DELETE THEM)





BY: Anjali Maahil

Apr 8, 2011

यादों का शहर


अजीब सी खुशबू ,
चारों और फैली है !
ये जो है शहर ,
दिलों के ख्वाबों का शहर है ,
ये  शहर बड़ा अजीब है ,
कब्रिस्तान सा शहर है |
यहाँ  जिन्दा नही कोई !

ये तंगहाली- बदहाली का शहर  है ,
जिन्दगी यहाँ बस्ती है जिनती ,
उतनी उजाड़ भी है |
बसाऊँ कोई ख्वाब मैं ,
तो यहाँ जगह भी कोई कभी
नही मुझे बताता यारों !
ये  शहर बड़ा अजीब है ----------

ये जितना हलचल भरा है ,
उतना वीरान भी है |
चीखती है कई बार यादें ,
और दफ़न भी,
हो जाती है यहाँ |
ये  शहर बड़ा अजीब है ----------

फरमाइश  करती है जब ,
फरेब की हमसे दुनिया |
तो हम यहाँ के बड़े ,
अदाकार लगते हैं |
कलाकार लगते हैं |
मगर यहाँ उस अदाकारी  पर  
तली कभी कोई नही बजता यारों !
ये  शहर बड़ा अजीब है ----------

खो जो जाता है ,
कोई यहाँ अपना ,
तो यहाँ कोहराम मचता है |
तो खामोश दफ़न ,
हो जाते हैं हम  ,
जिन्दा , खंडर में कभी |
तो कोई क्यों -
यहाँ लाश पर कभी 
कोई कफ़न नही चढ़ाता यारों ?


ये  शहर बड़ा अजीब है 

कब्रिस्तान सा शहर है 
यहं जिन्दा नही कोई !



BY: Anjali Maahil



Apr 5, 2011

मैं थकता नही हूँ ...!

वो  बुझी  हुई  आखें  कहती  हैं  
"मैं   थकता  नही हूँ जीवन भर |"
आश्चर्य से एकटक मैं देखती हूँ ,
और शब्द  गूंजते से प्रतीत होते हैं मुझे |


रुक नही सकता , थककर थम नही सकता ,
शून्य हो जाऊंगा , चेतना विलुप्त हो जाएगी ,
कहता है कर्म मेरा , आगे बढ़ मुझसे ,

यही वजह है कि -
" मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"


वो कहता है :

राहों से "पहचान" मेरी इतनी हुई 
की खौफ ना मंजिल से भटकने का रहा 
समय से हर बार उलझे 
और साँस से साँस जुड़कर ,
फिर एक बार टूटी | 
यही वजह है कि -
" मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"




वर्षा से धुल नही सकता 
ग्रीष्म में जल नही सकता 
सर्दी नही हाड, कपाती कभी भी मेरे
ये जो भी  दिन हैं , परिश्रम के हैं 

यही वजह है कि -
" मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"


मेरा जीवन परोपकार का है 
मेरा जीवन संघर्ष का है
फिर भले ही कांधा दर्द से चूर हो 
नींद आखों में भरपूर हो 
छाले बेडी से पाँव में पड़ जाते हो 

"मगर मैं थक नही सकता 
चेतना शून्य  हो जाएगी |"

BY: Anjali Maahil

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