सर्वाधिकार सुरक्षित : - यहाँ प्रकाशित कवितायेँ और टिप्पणियाँ बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी प्रकाशित करना पूर्णतया अवैध है.

Followers of Pahchan

May 30, 2011

ये मेरा शहर दिल्ली

ये मेरा शहर दिल्ली ,
बड़ी महोब्बतों का शहर है,
किसी से , किसी को ,
शिकायत नही ,
फिर भी बहुत बदनाम हैं ,
उठा उठा कर अंगुलियाँ ,
लोग इसे सलाम देते है !

इसे,
नवाबो के ठाट तो ,
मुफलिसी के पैबंद भी मिले ,
समां दर्द सीने में सबसे ,
मुस्कुरा के मिलता हैं ,
बड़ी  महोब्बतों का शहर हैं ,
ये मेरा शहर दिल्ली !

इसे ,
रातों  को जगमगाहट तो ,
दिन में अँधेरे भी मिलें ,
दुश्मनी में भी सबसे ,
शराफत से मिलता हैं ,
बड़ी महोब्बतों  का शहर है ,
ये मेरा शहर दिल्ली !




वो  और बीज थे थे पलकर , 
जो रह गये इसमें ,
मुसाफिरों के व्याख्यानों में ,
नाम इसे "बाज़ार" मिलता है ,
बड़ी महोब्बतों  का शहर है ,
ये मेरा शहर दिल्ली !



आते हैं बड़ी दूर से आज ,
ख्वाहिशों में जो इसकी  ,
बनाते ही यहाँ 'पहचान' ,
फिर इसे ही भूल जाते हैं ,
फिर भी, इसको किसी से
शिकायत नही ,
बड़ी  महोब्बतों का शहर हैं ,
ये मेरा शहर दिल्ली !



By : Anjali Maahil 

May 24, 2011

जाने कब जाने कैसे ?

जाने कब जाने कैसे ?
हाथों की लकीरों में ,
दर्द दिल का उतर आया ,
जो किसी चेहरे पर ,
बीते वक़्त पढ़ा था !


जाने कब जाने कैसे ?
हसरत , बिखरी अधूरी ,
खवाहिशें समेटने की उभर आयी ,
जो किसी जुबान से ,
बीते वक़्त सुना थी  !


जाने कब जाने कैसे ?
दरारे अध्-खुले दरवाजों से 
आधी दीवारों पर चढ़ने लगी ,
जो किसी खंडर पर ,
बीते वक़्त देखी थी !



BY: ANJALI MAAHIL

May 15, 2011

शरारत...

मैं  मुस्कुरा  दिया ,
उस रात चांदनी में ,
भीगते देखा था तुम्हे ,
कसक उठी थी ,
कैद तुम्हे बाहों में  कर लूँ !

उस रोज़ तन्हाई में बातें  ,
करते सुना था तुम्हे ,
कसक उठी थी ,
अपनी ख़ामोशी में ,
तुम्हे खामोश कर लूँ !

गुलाब की पंखुड़ियों के बीच ,
उस रोज़ मुस्कुराते देखा जब तुम्हे ,
सोच कर बांध  लूँ पलकों  में तुम्हे ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो  कोई शरारत होगी !

कागज पर उलझे शब्दों पर उँगलियाँ फेर,
उस रोज़ सोचते हुए देखा था तुम्हे ,
हैरान कर दूँ छुकर ,ये सोच ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो  कोई शरारत होगी !

मुझे गुनगुनाते देख 
मेरी शरारत को जानकर ,
उस रोज़ कहा था तुमने ,
" क्या हुआ? "
एक-एक लफ्ज कर दूँ बयां , ये सोच ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो फिर कोई शरारत होगी !

उस बीती सी रात में ,
क्या नया था ?
तुम ही तो थी ,
मगर खास थी ,
शायद मुझसे कुछ ,
ज्यादा ही करीब थी !


BY: Anjali Maahil

May 6, 2011

बेकार की बातें

कल पूरे दिन में घर में कैद रहकर ,खिड़की से झांकते  हुए
मैं बार बार यही सोचती रही की -
अजनबी सी दुनिया में अनजाने चेहरों  के बीच 
कोई अचानक इतना अपना सा क्यूँ बन जाता है...?
ऐसा क्या छुपा होता है ,ओरों से अलग .....उसमे ?

ये बार बार सोचने की वजह भी बड़ी अजीब  थी !
मेरे एक पुराने मित्र ने मुझसे ये प्रश्न पूछा था ,
कि -
" ऐसा क्या था उसमे (उनका प्यार)
कि इतना लम्बा वक़्त गुजर जाने 
पर भी मैं उसे भूल नही पाया ..?
उसकी  तस्वीर  भेजूंगा .....  तुम मुझे बताना !"

मगर मैंने बहाने से उन्ही को जवाब ढूंढ़ने के लिए कह दिया !
और रात भर इसी विषय पर सोचती रही ...
"क्यूँ और किस तरहा ? "
और इतना ही लिख सकी-

"तूफान के बाद यूँ तो बस तो गया मेरा शहर ,
नए वजूद के साथ , नए होंसलों के साथ , 
मगर उठती हैं हुंक , दिल में अतीत की ,
तूफान के बाद ......
ये कब्रिस्तान  के ऊपर का नया मकां मेरा , 
दीवारें सुर्ख रंग बिखेरे हैं ,तो ,
जमीं भी कुछ दफ़न किये बैठी है ...!"

-anjali maahil

May 4, 2011

एक तस्वीर लाजमी सी है !

बहुत  वक़्त गुजर गया ,
और जाने कितने ही पहर अभी  बाकी हैं ?
अब धीरे -धीरे  मिटने  लगे  हैं ,
रेत  पर  तेरे  निशान  भी  ,
बहुत  वक़्त गुजर गया है   ,
तुम्हे  यहाँ  आये  हुए   ,
सोचती हूँ अब ,
एक तस्वीर लाजमी सी  है ...!

नए  -पुराने  चेहरे , आज-कल 
आये गये हैं , बहुत मेरे  सामने , 
और जाने कितने ही चेहरे आने  अभी  बाकी हैं ?
धीरे -धीरे मिटने लगे हैं ,
तेरे अक्स  के निशान भी ,
बहुत वक़्त गुजर गया है  ,
तुम्हे   यहाँ आये  हुए   ,
सोचती  हूँ अब ,
एक  तस्वीर लाजमी सी  है  ..!





BY: Anjali Maahil

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...