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Jul 31, 2011

कमी

"जब  सदायें  पिछा करती  हैं ......तब अकेलेपन की बहुत याद आती है !!!"


"देख कुछ कमी है मुझमें "
बहुत असहज सा लगता है , 
कुछ पराया सा , छुटा हुआ !
तब अपनेपन की बहुत याद आती है !

बीते वक्त की तस्वीरों में ,
कैद हो गयी खुशियाँ सारी ,
मैं अतीत , और तुम वर्तमान ,
कहकर अंधेरों में कचोटती हैं ,
आईने में देखता हूँ ,
असलियत जब अपनी ,
तब याद आता है , 
"देख कुछ कमी है मुझमे ...."

खाली से हाथ , शून्य की ओर ,
देखती एकटक आखें ,
कुछ तलाशती हुई ,
बेरंग दीवारों के बीच
घिरा "मैं" खुद को पाता हूँ ,
कुछ निराश , कुछ हताश ,
तब सोचता हूँ ,
" देख कुछ कमी है मुझमे ....."

-Anjali Maahil

Jul 24, 2011

माटी जैसे हम....

"लगा चाक पर पड़ी माटी जैसे हम अब हो गये ..."

कुम्हार का गोल पहिया 
घूमता रहा , घुमाता रहा 
वो तो समय चक्र था ,
खुद चलता रहा , हमे भी चलाता रहा !!

मैं जो कल में भी था ,
और कल के आने वाले 
वक्त में भी व्याप्त हूँ ,
फिर डरना मुझसे कैसा ??
बात कहकर , 
आगे बढ़ता रहा ...हमे भी बढाता रहा ,
चलता रहा ....चलाता रहा !!

मिटटी गिरी , शक्ल चुनी , 
एक छन में सभी कुछ ,
परिवर्तित हो गया ,
नियम नियति का कहकर ,
खुद को वो बदलता रहा ,
चलता रहा .... हमे भी चलाता रहा !!

 कच्ची मिटटी की गीली शक्ल को ,
अधुरा छोड़ , पकाने को दुनिया की ,
तीखी तलख टिप्पणियों से ,
आगे उसे सरकाता रहा ...
कुछ सीखता रहा ....और हमे भी सिखाता रहा,
खुद को बहलाता रहा .... हमे उलझता रहा !

खुद चलता रहा ....हमे भी चलाता रहा !! 


-ANJALI MAAHIL

Jul 18, 2011

कविता एक रात की


कितनी खामोश चांदनी हैं रात की ,
वो  जानती हैं , कोई ,
सवाल इससे कहीं कर रहा होगा ,
वो जो बैठा  होगा , नजरो को उठाये  हुए ,
तूफ़ान दिल में समाये हुए |
कितनी खामोश चांदनी हैं .......

कहीं सवाल होगा किसी किस्से कहानी का ,
कोई ढूंढ़ता उसमे , अपना अक्स भी होगा ,
सोचकर ,  मैं अंत हूँ या अंत में मैं हूँ ,

कहीं सवाल होगा , छोटी हथेली का ,
जो छू रहा होगा , खुले आसमान को अपने ,
सोचकर  , छोटी हथेली हैं , या आकाश बड़ा हैं ?

कहीं सवाल होगा  , बूढ़े  से हाथों का ,
जो छू रहा होगा ,  झुरियों में लकीरों को अपनी ,
सोचकर  , कमजोर आँखें हैं , या लकीरें बढ़ गयी ?

कहीं सवाल होगा , महोब्बत के फसानो का ,
कोई रूककर फिर , मनुहार को तैयार बैठा हैं ,
सोचकर  , ख़ुशी रूठने में हैं ,या मान जाने में ?

कहीं सवाल होगा , कविता के  अधूरे छंद का ,
कोई तेरा कागज लिए कोरा   , बेहिसाब लिखता हैं ,
सोचकर , शब्दों में अहसास कैसे उभरते हैं , या ,
बिखर जाते हैं बस यूँ ही ?

सब रह गए असफल , जवाब की तलाश में ,
सब जानते हैं , क्यों ,
इतनी खामोश चांदनी हैं रात की .....


-अंजलि माहिल 

Jul 12, 2011

तुम्ही से हम ....



हमसे  दूर  हैं  वो  इतने , की  नज़रों  में  समायें हैं ,
हर रोशन चिरागों के पीछे , लगा उन्ही के साये हैं |

दस्तक होती है दरवाजे पर जब कभी ,
यूँ लगा वो हम से मिलने आये हैं |

उनकी मीठी सी यादें दिल में सजाये रहते हैं ,
जैसे एक रात में, अनगिनत तारे समाये रहते हैं |

यादों में जी रहें हैं , उनके सामने के लिए ,
गुरुर है हमको , वो हमारे लिए जमीं पर आये हैं |

जानते हैं हम आपको , मुस्कुरा रहे हैं आप,
क्यूंकि ये शख्स हमे जवाबों में नज़र आयें हैं  |


मेरी किताब की पहली महक.......
ये मेरी सबसे पहली कविताओं में से एक है ......

-Anjali Maahil

Jul 9, 2011

अब अंत में ,


मैं कहाँ से अपनी जिन्दगी का ये अधुरा सफ़र पूरा करूँ ?
रिश्ते बनावटी से अब दिखने लगे हैं ,
किसी पर विश्वास की चादर भी ,
अब काली और मैली सी प्रतीत होती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से .......





उम्र का रिश्ता , 
जनम के रिश्ते से भी पास लगता है,
उसमे कुछ शेष है , 
ये भी अटकता  है ,फिर ,
हर नए मोड़ पर ,  
ये  रिश्ता भी बदलता है ,
और हर आकृति , अब
श्याह सी प्रतीत होती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ..........






कभी जहन में नयी- पुरानी यादें आती हैं  ,
तो पलकों के मोती भी लौट आते हैं ,
कभी दिल बेचैन , तो जिस्म खामोश लगता है ,
मगर धड़कन से पत्तों के खरकने की आवाज़ आती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ...........






कभी सवालों के समाधानों की ,
कशमकश में फ़सी रहती हूँ ,
कभी जीवन में सर्वत्र अंधकार लगता है ,
अपनेपन के चेहरों से पटी ये दुनिया ,
हंसती , जीवित ...और कभी अनजान  लगती है |


अब अंत में ,
मैं कहाँ से अपनी जिन्दगी का ये अधुरा सफ़र पूरा करूँ ?



-Anjali Maahil

Jul 5, 2011

आइना-ये कहता है !

आइना देखूं तो ,
आइना अक्सर  मुझसे ये कहता है !
बता कौन है वो शख्स  , 
जो तेरे अन्दर ,
तुझ से  सच कहता है ?

इस ठहरे हुए पानी में ,
अक्स देख तो अपना ,
बता कौन है  वो शख्स ,
जो तेरी रूह में तेरे संग रहता है  ?

हो जाती कभी सुबह ,
कभी छा जाती चांदनी ,
बता कौन है वो शख्स ,
जो दर्द बन तुझमे हर वक़्त रहता है ?


झांक खुद में  तू .... और  तलाश कर अपनी 
बता कौन है वो  शख्स ,
जो जहान में खुदी से  जुदा रहता  है  ?
आइना देखूं तो, आइना  .....ये कहता है . 



सच क्यूँ नही कहती , स्वयं से ?
वही सच जो ओरों से  छुपा है !
 " मैं कमजोर नही ...! "
आइना देखूं तो , 
आइना अक्सर मुझसे ये कहता है ...!






BY: ANJALI MAAHIL

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