ना बात करते हो , ना लौट आते हो !
सुनो! नाराज हो , क्यूँ खामोश हो?
शिकायत है तो मुझसे कहो,
मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?
रह रह कर तुम्हारी बीती बातें याद आती हैं ,
वो रूठ जाना और मान भी जाना पलभर में ,
बिठाकर सामने ,मुझे ही ख़त लिखना,
अब जिन्दगी में ,उस ख़त पर लिखे ,
नाम का सहारा ही रह गया है ,
ना बात करते हो , ना लौट आते हो !
बताओ ना ! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?
क्या कोरे तुम्हारे कागज सब भर गये ?
भरे हुए वो पन्ने भी हवा संग उड़ गये ?
याद क्या तुम्हे मेरी कभी आती नही ?
तेरी यादों के दीये सब बुझ गये ?
ना बात करते हो , ना लौट आते हो !
बताओ ना! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?
रूठकर भी मान जाने का तुम तो वादा करते थे !
सागर से भी गहरे प्यार का तुम जो दावा करते थे !
अब निभाने को तुम से बार - बार मैं आग्रह करती हूँ ...तो तुम
ना बात करते हो ना लौट आते हो ,
बताओ ना ! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?
मैं अब तुम्हारे वृक्ष (परिवार) की
एक सूखी सी डाल बन रह गयी हूँ
सूख कर भी जो चटकी नही और फब्ती भी नही ,
ना ही अब मुझ पर कभी यौवन आएगा...मगर तुम
ना बात करते हो , ना लौट आते हो ,
बताओ ना ! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?
ये कविता मैंने अपनी "दी" के लिए लिखी है, हालही में मेरे जीजू की आकस्मिक
सड़क दुर्घटना में निधन हो गया है ... बस उन्ही के दर्द समेटने की कोशिश की है ... उनके सवाल तो सब सुनते हैं ..मगर जवाब कोई नही देता ...!!!
(मैं कुछ पारिवारिक वजहों के कारण काफी दिन से ब्लॉग से दूर रही थी , इस कारण मैं कुछ लोगों को उनके प्रश्न का जवाब नही दे सकी, उसके लिए माफ़ी मांगती हूँ, कोशिश करुँगी की यहाँ भी लोगों से भी संवाद बनाये रखूं ...)
-ANJALI माहिल
(चित्र :गूगल के सौजन्य से)