काफी वक़्त बाद आना हो रहा है यहाँ।.....
अपने जीवन की परेशानियों से समाधान ढूंढ़ रही थी , इसलिए खामोश थी।...सब से रूककर..... कुछ वक़्त अपने लिए सहेज रही थी .....मगर अब लगता है कि बुरे वक़्त से जूंझने के लिए सबसे अच्छा साथी अपने शब्द हैं मेरे लिए, जो ...मेरे "साथी" भी हैं ....और मेरी "पहचान" भी !!
शून्य ( 0 )
" शून्य हो जाती हूँ मैं..."
पूर्ण अहसासों के अधूरे स्पर्श से,
अतीत के पुराने अढीले पत्रों की ,
आड़ी - टेढ़ी रेखाओं मे...
जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?
जज्बातों के कटु अनुभवों में,
रेशम से ज्यादा मजबूत बुनी यादों ,
के पुराने मद्धम पड़े संवादों में...
जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?
शून्य हो जाती हूँ मैं
जब देखकर मेरी बेबसी भी,
तुम होकर नादान मुस्कुरा देते हो...
लकीरें खींचकर जब मेरे आंसू
सूख जाते हैं मेरे जमीर में ....
और कहते हो तुम ..मेरे चेहरे
पर अब रूखापन नजर आता है ...
तुम जानते हो क्या...
"जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?"
अपने जीवन की परेशानियों से समाधान ढूंढ़ रही थी , इसलिए खामोश थी।...सब से रूककर..... कुछ वक़्त अपने लिए सहेज रही थी .....मगर अब लगता है कि बुरे वक़्त से जूंझने के लिए सबसे अच्छा साथी अपने शब्द हैं मेरे लिए, जो ...मेरे "साथी" भी हैं ....और मेरी "पहचान" भी !!
शून्य ( 0 )
" शून्य हो जाती हूँ मैं..."
पूर्ण अहसासों के अधूरे स्पर्श से,
अतीत के पुराने अढीले पत्रों की ,
आड़ी - टेढ़ी रेखाओं मे...
जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?
जज्बातों के कटु अनुभवों में,
रेशम से ज्यादा मजबूत बुनी यादों ,
के पुराने मद्धम पड़े संवादों में...
जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?
शून्य हो जाती हूँ मैं
जब देखकर मेरी बेबसी भी,
तुम होकर नादान मुस्कुरा देते हो...
लकीरें खींचकर जब मेरे आंसू
सूख जाते हैं मेरे जमीर में ....
और कहते हो तुम ..मेरे चेहरे
पर अब रूखापन नजर आता है ...
तुम जानते हो क्या...
"जाने कब शून्य हो जाती हूँ मैं..?"
-अंजलि माहिल